Wednesday, February 27, 2013

Reflections: My Swing



The Swing

In the courtyard
Of my grandmother's house
I remember the day
Grandpa put up
The Swing
Just for me

I remember the way
He'd stand behind me
When my feet
Didn't quite touch the ground
Help me swing higher
Urging me to reach for the stars
And when I got there,
Share with him whether or not
They made any sound!

My Swing sprinkled
Some stars right into my eyes
Pretty soon their magic pixie dust
Worked its wonders
Painting my whole world
In a beautiful glow


Transforming into my getaway
My Swing and I visited
The magical wonderlands
Of a little girl's imagination
Giving birth to
A new story each day

Through those shimmering eyes
We'd see wondrous things unfold
And tell Grandpa 
Stories right back
Of baby birds that kept house
While Mommy fetched them food
Of the corner lilies' games
To bloom faster than each other
Of ants marching along in a single file
Smuggling loads of sugar from Grandma's pantry
Of the breeze creating waves in the fields
Of interesting characters amidst the clouds
Playing Hide and seek
My Swing was a little shy
Always content to let me shine
Though I often received silent swaying reminders
Of our adventures together


Effortlessly, my Swing
Carried me higher each time
The swoosh coming downward
Breeze billowing my hair
Turning round and round infinitely
Then letting go
For the ropes to unravel
At dizzying speeds
My Swing loving the games
We played together each day
  
My Swing became my abode
Drew me to it
No matter what the hour
I'd skip along to perch on it
First thing upon waking up
And often when calls for lunch or dinner
Fell upon the deaf ears on my Swing
Grandma came out softly
Feeding me with a wordless smile
To help me escape
Grandpa's rules of eating at the table
My Swing, my silent partner in crime!

And when the whole house
Had retired in the cool comfort
Of an afternoon nap
I'd sneak away yet again
To give company to my lonesome Swing
Braving the scorching summer heat
My favorite books in hand
The promise of new friends
For my Swing
  
The day 
Grandpa didn't return 
From the hospital
My Swing comforted me
Cradling me,
Holding me close
As I struggled to understand
Where he'd disappeared
And what Mom meant by
"God needed him more"
  
When the house 
Was filled with people
My Swing bid a silent adieu
I remember the pain
Of a forced
Unwelcome parting
From Grandpa 
And my Swing
The rolling motion 
Of the train ride back home
Brought memories 
Of my Swing flooding back
And I wondered 
Would we ever meet again?

The next summer
Grandma welcomed us back
With a sad, wan smile
Suddenly she seemed an old woman
I had never known before
  
Slowly I walked 
Through the dim
Never-ending corridor
And seemed to hear
A faint rustle from afar
A movement in the courtyard
Caught my eye


Curious, I ran on ahead
And was greeted 
By a welcome dance
A long-awaited embrace
A familiar resting place

That gift from Grandma
Was the most precious thing
Finally,
I was reunited
With my Beloved Swing

- Seattle, March 5, 2012

झूले का साथ

अम्मा  के  आँगन  में  बीतीं
गर्मियों  की  छुट्टियों  के
वो  दिन  याद  हैं  मुझे
जब नानाजी ने
सिर्फ मेरे लिए
झूला लगाया था

सब याद  है
कैसे वे पीछे से ही मुझे संभालते
जब पैर मेरे ज़मीन तक ना पहुँचते
ऊपर ही ऊपर
सितारों समीप वे मुझे पहुंचाते थे
वहाँ से कई कहानियाँ
झूला और मैं उन्हें सुनाते थे



उस जादुई झूले ने
कुछ सितारों के कण
डाले मेरी आँखों में
रंगीनियों से भरी मेरी
दुनिया हर क्षण क्षण


अपने  उड़न  खटोले
पर  सवार
रोज़  लेती  मैं  इक
नयी  कल्पना  की  उड़ान
रोज़  मिलता  था   हमें
इक  नयी  दास्ताँ का 
नया जन्म-स्थान


उन झिलमिलाती अँखियों से
दिखती हमें चमत्कारिक बातें 
सुनाते नानाजी को हम
नित नयी नयी कथाएँ
नन्ही  गौरैया घर  सजाती 
कैसे  माँ की  राह  तकती
कोने  में  होती  रोज़  की  दौड़
कमल के फूलों के खिलने की होड़
लकीरें  चुनती  हुई  चींटियाँ
मिश्री की डलियों  की करती जो चोरियाँ
बादलों में छिपते छिपाते
जाने कितने पात्र
मेरा झूला था शर्मीला
मैं कह जाती सारी बात
हल्के से लहरा कर अपनी बात बताता था
अपने रोमांचक कारनामों की
याद मुझे करवाता था




सहजता से, मेरा झूला
मुझे और ऊँचा ले चलता था
हवाओं के झोंकों से
मुझे अवगत करवाता था
गोल गोल घूम घूम के
अकस्मात खुला छोड़ जाना
चक्कर खाते खाते ज़ोरों से साथ हँसना
रोज़ का हमारा साथ था बड़ा सुहाना



वो झूला था मेरा निवास
बुलाता हर क्षण मुझे अपने पास
इक ऐसा ख़ास बसेरा
जमता उस पर घंटो तक डेरा
जब भोजन की पुकार बहरे कानो पर पड़ती
अम्मा चुपके से थाली ले आती
मुस्कुराते हुए मुझे खिलाती
प्यार से मुझे सहलाती
नानाजी के नियमों से मुझे बचाती
मेरा झूला, मेरा मौन सह-अपराधी



और गर्म दुपहरों में
जब शीतल झपकी सब  लेते
झूले का अकेलापन मिटाने
मेरे कदम सदा  पहुँचते
मनपसंद किताब लिए
घंटों उसका मन बहलाते
नित नए अफसानों में मिले
नए नए मित्र बनाते


 जिस रोज़
नानाजी अस्पताल से ना लौटे
मेरे झूले ने ही साथ निभाया
माँ ने कई बार समझाया
भगवानजी ने उन्हें पास बुलाया
कोमल बचपन का मेरा मन
यह बात समझ ना पाया
झूले के आलिंगन में बंध
इक अरसा रोते रोते बिताया




शान्ति पाठ के लिए
जब पूरा घर लोगों से था भरा
याद है मुझे कहना पड़ा
 इक दुसरे को अलविदा
बढ़ना पड़ा आगे हो कर जुदा
नानाजी से भी, अपने झूले से भी
रेलगाड़ी में बैठते ही
झूले की याद फिर कौंधी
घर लौटते हुए मन में
थी बस एक ही आंधी
क्या हम फिर मिल सकेंगे?


अगली छुट्टियों में
ज़र्द सी मुस्कान सहित
अम्मा का वो स्वागत
अचानक से लगने लगीं थी वे
इक लाचार बड़ी उम्र की औरत


बढ़ने लगी मैं धीमे धीमे
उन धुंधले से गलियारों में
यकायक सुनाई दी थी मुझे
इक हल्की सी सरसराहट
आँगन में थी
किसी अपने की ही आहट


उत्सुकता ने पंख लगाए
हवाओं ने साथ निभाया
बड़ी ख़ुशी से मुझे
झूले ने फिर गले लगाया

  
अम्मा का वो उपहार
था सबसे अनमोल रत्नों का हार
मिल ही गया था फिर मुझे
अपने दुलारे झूले का प्यार

अनुवादन - मई १६, २०१२

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