Saturday, March 2, 2013

Reflections: Sunshine



  
धूप 

कभी घनी रातों से गुज़रते 
कभी अँधेरे तूफानों से जूझते 
अक्सर ये भूल हैं जाते 
कहीं ना कहीं तो धूप खिली है 

कहीं ना कहीं 
कोई यादें हैं छिपी 
कहीं ना कहीं 
हैं कई उम्मीदें भरी 
कहीं ना कहीं 
सपनो का बसेरा है 
कहीं ना कहीं 
ख्वाहिशों का डेरा है 
कहीं ना कहीं 
इक नया सवेरा है 

बारिशें क्यों आती हैं आखिर
घटाएँ क्यों छा जाती हैं

इन सवालों से परे भी 
कई जवाब हैं मुमकिन 
बादलों के ऊपर उठिए तो 
हर ओर मिलती है सूरज की किरण

रात की सुरंग से निकल 
सूरज अपना रास्ता चुन लेता है 
कभी फीकी सी 
तो कभी तेज़ सुनहरी धूप के 
उपहार रोज़ दे जाता है 

चाहे कितना लम्बा हो ये सफ़र 
कितनी ही लम्बी रात हो बाकी 
कितने ही हों उसके पहर 
मिल जाते हैं साहिल कहीं ना कहीं 
खिल जाती है धूपयहाँ भी,
कभी ना कभी 
Enroute – Seattle-San Jose, 
December 25, 2011

Sunshine

 Traveling through a dense, dark night
Navigating tumultuous storms
So easy to forget
Somewhere, sunshine transforms

Somewhere exist
Memories tucked away
Somewhere blossom
New hopes, making  their way
Somewhere
New dreams do thrive
Somewhere 
New wishes can survive
Somewhere
A new dawn is alive

Why do the rains pour down?
What makes the clouds dark?

Moving beyond questions
Reveals beautiful possibility 
Soaring high above the curtains
Shines the light in all its beauty

Emerging from the dark tunnel
The sun picks his path
Some days, bringing such a personal
Present of languid warmth
And on others, scorching heat that shrivels

No matter how tiring the journey
Or how long the dark night
The tranquil shore embraces the sea
The lover and beloved do unite
Opening the eyes helps to see
A glorious burst of sunlight

Translated, April 2012

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